Friday, April 1, 2016

ईसबगोल

 ईसबगोल से आतो की सफाई 

- बाजार में मिलने वाला ईसबगोल झाड़ी का आकार में उगने वाले एक पौधे के बीज का छिक्कल है।

कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में ईसबगोल को बहुत अधिक महत्त्व प्राप्त है। संस्कृत में इसे स्निग्धबीजम् नाम दिया गया है।

कि दसवीं सदी के फारस के मशहूर हकीम अलहेरवी और अरबी हकीम अविसेन्ना ने इसे 'ईसबगोल' नाम दिया।

कि ईसबगोल का उपयोग रंग-रोगन, आइस्क्रीम और अन्य चिकने पदार्थों के निर्माण में भी किया जाता है

हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति मूलतः प्राकृतिक पदार्थों और जड़ी-बूटियों पर आधारित थी। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में साध्य-असाध्य रोगों का इलाज हम प्रकृति प्रदत्त वनस्पतियों के माध्यम से सफलतापूर्वक करते थे। समय की धुंध के साथ हम कई प्राकृतिक औषधियों को भुला बैठे। 'ईसबगोल' जैसी चमत्कारिक प्राकृतिक औषधि भी उन्हीं में से एक है। हमारे वैदिक साहित्य और प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।

विश्व की लगभग हर प्रकार की चिकित्सा पद्धति में 'ईसबगोल' का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। अरबी और फारसी चिकित्सकों द्वारा इसके इस्तेमाल के प्रमाण मिलते हैं। दसवीं सदी के फारस के मशहूर हकीम अलहेरवी और अरबी हकीम अविसेन्ना ने 'ईसबगोल' द्वारा चिकित्सा के संबंध में व्यापक प्रयोग व अनुसंधान किए। 'ईसबगोल' मूलतः फारसी भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- 'पेट ठंडा करनेवाला पदार्थ', गुजराती में 'उठनुंजीरू' कहा जाता है। लेटिन भाषा में यह 'प्लेंटेगो ओवेटा' नाम से जाना जाता है। इसका वनस्पति शास्त्रीय नाम 'प्लेटेगा इंडिका' है तथा यह 'प्लेटो जिनेली' समूह का पौधा है।

तनारहित पौधा

'ईसबगोल' पश्चिम एशियाई मूल का पौधा है। यह एक झाड़ी के रूप में उगता है, जिसकी अधिकतम ऊँचाई ढाई से तीन फुट तक होती है। इसके पत्ते महीन होते हैं तथा इसकी टहनियों पर गेहूँ की तरह बालियाँ लगने का बाद फूल आते हैं। फूलों में नाव के आकार के बीज होते हैं। इसके बीजों पर पतली सफ़ेद झिल्ली होती है। यह झिल्ली ही 'ईसबगोल की भूसी' कहलाती है। बीजों से भूसी निकालने का कार्य हाथ से चलाई जानेवाली चक्कियों और मशीनों से किया जाता है। ईसबगोल भूसी के रूप में ही उपयोग में आता है तथा इस भूसी का सर्वाधिक औषधीय महत्व है। 'ईसबगोल' की बुआई शीत ऋतु के प्रारंभ में की जाती है। इसकी बुआई के वास्ते नमीवाली ज़मीन होना आवश्यक है। आमतौर पर यह क्यारियाँ बनाकर बोया जाता है। बीज के अंकुरित होने में करीब सात से दस दिन लगते हैं। 'ईसबगोल' के पौधों की बढ़त बहुत ही मंद गति से होती है।

औषधीय महत्व

यूनानी चिकित्सा पद्धति में इसके बीजों को शीतल, शांतिदायक, मलावरोध को दूर करनेवाला तथा अतिसार, पेचिश और आंत के ज़ख्म आदि रोगों में उपयोगी बताया गया है। प्रसिद्ध चिकित्सक मुजर्रवात अकबरी के अनुसार नियमित रूप से 'ईसबगोल' का सेवन करने से श्वसन रोगों तथा दमे में भी राहत मिलती है। अठारवीं शताब्दी के प्रतिभाशाली चिकित्सा विज्ञानी पलेमिंग और रॉक्सवर्ग ने भी अतिसार रोग के उपचार के लिए 'ईसबगोल' को रामबाण औषधि बताया। रासायनिक संरचना के अनुसार, 'ईसबगोल' के बीजों और भूसी में तीस प्रतिशत तक 'क्यूसिलेज' नामक तत्व पाया जाता है। इसकी प्रचुर मात्रा के कारण इसमें बीस गुना पानी मिलाने पर यह स्वादरहित जैली के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इसके अतिरिक्त 'ईसबगोल' में १४.७ प्रतिशत एक प्रकार का अम्लीय तेल होता है, जिसमें खून के कोलस्ट्रोल को घटाने की अद्भुत क्षमता होती है।

आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में भी इन दिनों 'ईसबगोल' का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। पाचन तंत्र से संबंधित रोगों की औषधियों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। अतिसार, पेचिश जैसे उदर रोगों में 'ईसबगोल' की भूसी का इस्तेमाल न केवल लाभप्रद है, बल्कि यह पाश्चात्य दवाओं दुष्प्रभावों से भी सर्वथा मुक्त है। भोजन में रेशेदार पदार्थों के अभाव के कारण 'कब्ज़' हो जाना आजकल सामान्य बात है और अधिकांश लोग इससे पीड़ित हैं। आहार में रेशेदार पदार्थों की कमी को नियमित रूप से ईसबगोल की भूसी का सेवन कर दूर किया जा सकता है। यह पेट में पानी सोखकर फूलती है और आँतों में उपस्थित पदार्थों का आकार बढ़ाती है। इससे आँतें अधिक सक्रिय होकर कार्य करने लगती है और पचे हुए पदार्थों को आगे बढ़ाती है। यह भूसी शरीर के विष पदार्थ (टाक्सिंस) और बैक्टीरिया को भी सोखकर शरीर से बाहर निकाल देती है। इसके लसीलेपन का गुण मरोड़ और पेचिश रोगों को दूर करने में सहायक होता है।

कुछ घरेलू प्रयोग
'ईसबगोल' की भूसी तथा इसके बीज दोनों ही विभिन्न रोगों में एक प्रभावी औषधि का कार्य करते हैं। इसके बीजों को शीतल जल में भिगोकर उसके अवलेह को छानकर पीने से खूनी बवासीर में लाभ होता है। नाक से खून बहने की स्थिति में 'ईसबगोल' के बीजों को सिरके के साथ पीसकर कनपटी पर लेप करना चाहिए।

कब्ज़ के अतिरिक्त दस्त, आँव, पेट दर्द आदि में भी 'ईसबगोल की भूसी' लेना लाभप्रद रहता है। अत्यधिक कफ होने की स्थिति में ईसबगोल के बीजों का काढ़ा बनाकर रोगी को दिया जाता है। आँव और मरोड़ होने पर एक चम्मच ईसबगोल की भूसी दो घंटे पानी में भिगोकर रोज़ाना दिन में चार बार लेने तथा उसके बाद से दही या छाछ पीने से लाभ देखा गया है।

ईसबगोलल की भूसी को सीधे भी दूध या पानी के साथ लिया जा सकता है या एक कप पानी में एक या दो छोटी चम्मच भूसी और कुछ शक्कर डालकर जेली तैयार कर लें तथा इसका नियमित सेवन करें।

ईसबगोल रक्तातिसार, अतिसार और आम रक्तातिसार में भी फ़ायदेमंद है। खूनी बवासीर में भी इसका इस्तेमाल लाभ पहुँचाएगा। पेशाब में जलन की शिकायत होने पर तीन चम्मच ईसबगोल की भूसी एक गिलास ठंडे पानी में भिगोकर उसमें आवश्यकतानुसार बूरा डालकर पीने से यह शिकायत दूर हो सकती है। इसी प्रकार कंकर अथवा काँच खाने में आ जाए, तो दो चम्मच ईसबगोल की भूसी गरम दूध के साथ तीन-चार बार लेने पर आराम मिलता है।

लोकप्रिय औषधि
सामान्यतः ईसबगोल की भूसी का और बीजों का उपयोग रात्रि को सोने से पहले किया जाता है, किंतु आवश्यकतानुसार इन्हें दिन में दो या तीन बार भी लिया जा सकता है। ईसबगोल की भूसी का सामान्य रूप से पानी के साथ सेवन किया जाता है। कब्ज़ दूर करने के लिए इसे गरम दूध के साथ और दस्त, मरोड़, आँव आदि रोगों में दही अथवा छाछ के साथ सेवन करने का नियम है। सामान्यतः एक या दो चम्मच ईसबगोल की भूसी पर्याप्त रहती है।

ईसबगोल पाचन संस्थान संबंधी रोगों की लोकप्रिय औषधि होने के साथ-साथ इसका उपयोग रंग-रोगन, आइस्क्रीम और अन्य चिकने पदार्थों के निर्माण में भी किया जाता है। आजकल तो औषधीय गुणों से युक्त ईसबगोल की भूसी से गर्भ निरोधक गोलियाँ भी बनने लगी हैं। सचमुच ईसबगोलल एक चमत्कारिक औषधि है।
 क्या आपके बच्चे को नींद में पेशाब करने की आदत है? इसके घरेलु अचूक उपाय

नींद में पेशाब करना (असंयतमूत्रता)
यह रोग अधिकतर बच्चों में पाया जाता है। इस रोग से पीड़ित बच्चा रात को सोते समय बिस्तर पर पेशाब कर देता है। अक्सर 2 वर्ष तक के बच्चे इस रोग से ज्यादा ग्रस्त होते हैं। लेकिन अगर 3 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले बच्चों को भी इस प्रकार की शिकायत बनी रहे तो उस अवस्था को असंयतमूत्रता कहते हैं। यह अवस्था लड़कियों की अपेक्षा लड़कों तथा 3 वर्ष से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों में अधिक पाया जाता है। कई बच्चों में तो यह रोग इतना अधिक बढ़ जाता है कि बच्चे सोते ही बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं तथा कुछ पहली नींद आते ही तथा कुछ आधी रात के बाद या सुबह होने से कुछ घंटे पहले ही पेशाब कर देते हैं। कुछ बच्चों में यह रोग मौसम के अनुसार होता है जैसे- सर्दियों और बरसात के मौसम में। यह रोग उन बच्चों को अधिक होता है जिन्हें नींद अधिक आती है।

• कारण : नींद में पेशाब करने के कई कारण होते है जैसे- बढ़ी हुई उत्तेजना, अधीरता या मानसिक तनाव , शरीर में खून की कमी , शारीरिक रूप से अधिक कमजोर होना तथा कुछ बच्चों को रात में पेशाब करने की आदत पड़ना आदि। इस रोग के अन्य कारण भी हो सकते है जैसे- पेट में कीड़े होना , लिंगमुण्ड की कठोरता, अतिशय अम्लता, शाम को तरल पदार्थों का अधिक सेवन करना या फिर शरीर के मसाने की पेशियों का अनुपयुक्त विकास होना आदि। यह रोग अनेक रोगों के कारण भी हो सकता है जैसे- मधुमेह , पेशाब सम्बन्धी बीमारियों, गिल्टियां, लगातार पीठ के बल लेटना या पेशाब सम्बन्धी बीमारी होना आदि।

• उपचार : इस रोग से पीड़ित रोगी के पैर के तलुवों पर सुबह के समय में मध्यमशक्ति के चुम्बक को लगाना चाहिए तथा शाम के समय में शरीर के सूचीवेधन बिन्दु Sp-6 पर तथा सूचीवेधन बिन्दु Cv-2 पर चुम्बक का प्रयोग करना चाहिए। रात को सोते समय अपने मसाने के ऊपरी भाग में लाल तेल लगाना चाहिए।

• अन्य उपचार : इस रोग से ग्रस्त बच्चे को सुबह के समय में कसरत करनी चाहिए, ताजी हवा लेनी चाहिए और सुबह के वक्त ठण्डे पानी से नहाना चाहिए। बच्चे के घर वालों को कोशिश करनी चाहिए कि उनके इस रोग से ग्रस्त बच्चे को किसी प्रकार की अधीरता तथा मानसिक तनाव न हो पाये। जिन बच्चों को नींद में पेशाब करने की आदत हो उन्हें शाम के समय में अधिक तरल पदार्थो का सेवन नहीं करने देना चाहिए। किसी व्यक्ति को मधुमेह या गिल्टियां निकलने जैसी बीमारियां हो जाये तो उसका तुरन्त इलाज करना चाहिए। रात के समय में बच्चे को भोजन में मछली तथा अण्डा खिलाना चाहिए तथा गर्म पदार्थों को अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए क्योंकि ये गर्म पदार्थ नींद में पेशाब करने को कम कर देते हैं। रोगी बच्चे को ठण्डी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

• सुबह :-  खजूर 2-3 रात में भिगोया और सुबह में चबा चबाकर खाना ।
• प्रात: का भोजन :-  दाल में रार्इ की छौंक खाना
• रात मे :-  खजूर + मुनक्का + शहद के साथ 
• पथ्य :-  तेल से मूत्र के स्थान और पेट पर मालिश, पुराना चावल, उड़द, परवल, कुम्हड़ा की सब्जी, हरड़, नारियल, सुपारी, खजूर, रात में सोने से पहले पेशाब जायें, पानी सोते समय कम पीयें।

• अपथ्य :-  मिर्च, मसालेदार, भोजन, पेशाब रोकना। 

★ रोग मुक्ति के लिये आवश्यक नियम ★
• पानी के सामान्य नियम : 

1. सुबह बिना मंजन/कुल्ला किये दो गिलास गुनगुना पानी पिएं । 

2. पानी हमेशा बैठकर घूँट-घूँट कर के पियें । 

3. भोजन करते समय एक घूँट से अधिक पानी कदापि ना पियें, भोजन समाप्त होने के डेढ़ घण्टे बाद पानी अवश्य पियें । 

4. पानी हमेशा गुनगुना या सादा ही पियें (ठंडा पानी का प्रयोग कभी भी ना करें। 

• भोजन के सामान्य नियम : 

1. सूर्योदय के दो घंटे के अंदर सुबह का भोजन और सूर्यास्त के एक घंटे पहले का भोजन अवश्य कर लें । 

2. यदि दोपहर को भूख लगे तो १२ से २ बीच में अल्पाहार कर लें, उदाहरण - मूंग की खिचड़ी, सलाद, फल और छांछ । 

3. सुबह दही व फल दोपहर को छांछ और सूर्यास्त के पश्चात दूध हितकर है । 

4. भोजन अच्छी तरह चबाकर खाएं और दिन में ३ बार से अधिक ना खाएं । 

• अन्य आवश्यक नियम : 

1. मिट्टी के बर्तन/हांडी मे बनाया भोजन स्वस्थ्य के लिये सर्वश्रेष्ठ है । 

2. किसी भी प्रकार का रिफाइंड तेल और सोयाबीन, कपास, सूर्यमुखी, पाम, राईस ब्रॉन और वनस्पति घी का प्रयोग विषतुल्य है । उसके स्थान पर मूंगफली, तिल, सरसो व नारियल के घानी वाले तेल का ही प्रयोग करें ।  

3. चीनी/शक्कर का प्रयोग ना करें, उसके स्थान पर गुड़ या धागे वाली मिश्री (खड़ी शक्कर) का प्रयोग करें । 

4. आयोडीन युक्त नमक से नपुंसकता होती है इसलिए उसके स्थान पर सेंधा नमक या ढेले वाले नमक प्रयोग करें । 

5. मैदे का प्रयोग शरीर के लिये हानिकारक है इसलिए इसका प्रयोग ना करें । 

2 comments:

  1. मुझे यह सब दवा उपलब्ध करा सके ऐसेे सज्जन का नम्बर चाहिए

    ReplyDelete